Skip to main content

Posts

Showing posts from May, 2016

अँधेरा

हम तोह दुनियादारी के चंगुलों में फस्स कर, ज़िन्दगी को ही भुला बैठे, जो चाहा था की कलम से हो ज़िन्दगी , उसी कलम को सजा ए मौत सुना बैठे... हम ऐसे अंधेरो में बस चुके है, जहां दिये जलते नहीं, फिर  भी यह ज़ालिम दिल ने, दिवाली का इंतज़ार करना सिख दिया... अरे कलम से निकलती शब्दों की दरिया सूख चुकी है, पर यह कमबख्त आँखों ने आंसुओ से लफ्ज़ बयां करना सिख दिया.